शिया-सुन्नी संघर्ष से कब्रगाह बना पाकिस्तान का यह जिला, शरीफ सरकार बस तमाशा देख रही; क्या है इसकी वजह?…
पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के कुर्रम जिले में लंबे समय से जारी सांप्रदायिक तनाव एक बार फिर हिंसा में बदल गया है। पिछले चार दिनों में 70 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।
यह क्षेत्र अफगानिस्तान की सीमा से सटा हुआ है और खूबसूरत पहाड़ी इलाकों के लिए जाना जाता है। जुलाई के अंत में शिया और सुन्नी कबीलों के बीच भूमि विवाद ने हिंसक रूप ले लिया था, जिसमें कम से कम 46 लोगों की मौत हुई थी।
इसके बाद प्रशासन ने यात्रा पर प्रतिबंध लगाए और सुरक्षा कड़ी की, लेकिन यह उपाय आपसी हिंसा को रोकने में असफल रहा। पिछले एक दशक में यहां इतनी हत्याएं हो चुकी हैं कि ये जिला कब्रगाह बन चुका है।
ताजा हिंसा की घटनाएं
12 अक्टूबर को एक काफिले पर हमले में 15 लोगों की मौत हुई थी। इसके बाद 42 लोग एक अन्य हमले में मारे गए।
शनिवार को हुए एक और हमले में 32 लोगों की जान चली गई। स्थानीय शांति समिति के सदस्य और कबायली परिषद (जिरगा) के सदस्य महमूद अली जान ने कहा कि क्षेत्र में पिछले कुछ महीनों से लोगों को केवल काफिलों में यात्रा करने की अनुमति दी गई है।
12 अक्टूबर की घटना के बाद सड़कों को पूरी तरह बंद कर दिया गया था। नवंबर की शुरुआत में, हजारों लोग पराचिनार में “शांति मार्च” के लिए इकट्ठा हुए और सरकार से 8 लाख आबादी वाले इस जिले में सुरक्षा बढ़ाने की मांग की। इस जिले की 45% से अधिक जनसंख्या शिया समुदाय से आती है।
स्थिति नियंत्रित करने के प्रयास
एल-जजीरा के मुताबिक, कुर्रम के डिप्टी कमिश्नर जावेदुल्लाह महसूद ने कहा कि प्रशासन ने सप्ताह में चार दिन काफिलों के जरिए यात्रा की अनुमति दी है।
उन्होंने कहा, “हमने शिया और सुन्नी समूहों को साथ में यात्रा करने की व्यवस्था की है और उम्मीद है कि स्थिति जल्द सुधरेगी।” महसूद ने यह भी आश्वासन दिया कि जिले में दवाइयों, खाद्य सामग्री और अन्य आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति जारी है।
सांप्रदायिक हिंसा का इतिहास
कुर्रम में शिया और सुन्नी समुदायों के बीच तनाव का इतिहास पुराना है। हाल के दशकों में, अफगानिस्तान के खोस्त, पक्तिया और नंगरहार प्रांतों से सटा यह पहाड़ी इलाका सशस्त्र समूहों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है। 2007 से 2011 के बीच यहां सबसे घातक हिंसा हुई थी, जिसमें 2,000 से अधिक लोग मारे गए थे।
यह क्षेत्र पाकिस्तान तालिबान (टीटीपी) और आईएसआईएस जैसे आतंकी समूहों के हमलों का भी शिकार रहा है, जो शिया समुदाय के खिलाफ हिंसा के लिए कुख्यात हैं। जुलाई की हिंसा के बाद, 2 अगस्त को अंतर-जनजातीय युद्धविराम पर हस्ताक्षर किए गए, लेकिन सितंबर के अंत में इस क्षेत्र में फिर से हिंसा भड़क उठी, जब कम से कम 25 लोग मारे गए।
सरकार की भूमिका पर सवाल
स्थानीय लोगों का कहना है कि पाकिस्तान की शहबाद शरीफ सरकार हाथ पर हाथ रखकर तमाशा देख रही है। नेशनल डेमोक्रेटिक मूवमेंट (एनडीएम) के प्रमुख और पूर्व सांसद मोहसिन दावर ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा, “यह लगता है कि सरकार जानबूझकर क्षेत्र को अराजकता में रखना चाहती है। हत्याओं का बदला हत्याओं से लिया जाता है, और यह हिंसा का चक्र बन जाता है।”
स्थिति नियंत्रण में लाने के लिए प्रशासन और शांति समिति के प्रयास जारी हैं, लेकिन हिंसा का यह चक्र कब खत्म होगा, इस पर सवाल बना हुआ है।
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