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केरल में घटती आबादी बनी चिंता का विषय, तेजी से आ रही गिरावट

नई दिल्ली। केरल, जिसे भारत का यूरोप कहा जाता है, अपने बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार और प्रति व्यक्ति आय के लिए जाना जाता है। हालांकि, अब यहां की आबादी में जिस गति से गिरावट आ रही है, वह चिंता का विषय बन गई है। 2024 में केरल की अनुमानित आबादी 3.6 करोड़ थी, जबकि 1991 में यह संख्या 2.90 करोड़ थी।
पिछले 35 वर्षों में राज्य की आबादी केवल 70 लाख बढ़ी है। 2011 की जनगणना के अनुसार, यहां की आबादी 3.34 करोड़ थी, जो अब स्थिरता के करीब पहुंच गई है। लेकिन कोरोना महामारी के बाद से स्थिति और भी चिंताजनक हो गई है। पहले राज्य में सालाना 5 से 5.5 लाख बच्चों का जन्म होता था, लेकिन 2023 में यह संख्या घटकर केवल 3,93,231 पर आ गई, जो कि चार लाख से भी कम है। यह संख्या अब तक का सबसे कम आंकड़ा है। जनसंख्या वैज्ञानिकों के अनुसार, किसी भी राज्य की आबादी को स्थिर बनाए रखने के लिए 2.1 की फर्टिलिटी रेट की आवश्यकता होती है। केरल ने यह लक्ष्य 1987-88 में ही हासिल कर लिया था। यहां शिशु मृत्यु दर भी काफी कम है, जो प्रति एक हजार बच्चों पर सिर्फ छह है, जबकि राष्ट्रीय औसत 30 है। इसके बावजूद, पिछले तीन दशकों से यहां की आबादी स्थिर है, और पैदा होने वाले बच्चों की संख्या में लगातार गिरावट आ रही है। केरल में फर्टिलिटी रेट 1987-88 में 2.1 प्रतिशत था, लेकिन इसके बाद यह घटने लगा। 1991 के बाद से यह दर 1.7 से 1.8 के बीच रही और 2020 में यह घटकर 1.5 प्रतिशत पर आ गई। 2021 में यह 1.46 प्रतिशत तक गिर गई और अब 2023 के आंकड़ों के अनुसार यह 1.35 प्रतिशत पर पहुंच गई है।
इसका मतलब यह है कि यहां के अधिकांश दंपतियों के पास एक ही बच्चा है, और एक बड़ी संख्या ऐसे दंपतियों की है जिनके कोई बच्चे नहीं हैं। अगर यह ट्रेंड जारी रहता है, तो आने वाले समय में केरल की आबादी घटने लगेगी, जो न केवल सामाजिक और आर्थिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है, बल्कि राज्य की भविष्यवाणी के लिए भी एक गंभीर संकट बन सकता है। बता दें कि दक्षिण कोरिया, जापान और यूरोप जैसे देशों में घटती आबादी एक गंभीर समस्या बन चुकी है, और अब यह समस्या भारत के विकसित राज्य केरल में भी दिखने लगी है।

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