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अफगानिस्तान: मेडिकल प्रशिक्षण पर पाबंदी के खिलाफ महिलाओं ने उठाई आवाज

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) ने अफगानिस्तान के निजी चिकित्सा संस्थानों में महिलाओं द्वारा प्रशिक्षण हासिल करने पर थोपी गई पाबंदी पर गहरा दुख और नाराजगी जताई है। यूएन उच्चायुक्त वोल्कर टर्क ने इस प्रतिबंध को सत्तारूढ़ तालेबान प्रशासन द्वारा अफगान महिलाओं व लड़कियों के विरुद्ध एक और सीधा प्रहार करार देते हुए इसे वापिस लेने की मांग की है। यूएन कार्यालय की प्रवक्ता रवीना शमदासानी ने गुरुवार को उच्चायुक्त टर्क की ओर से जारी एक वक्तव्य में तालेबान प्रशासन के इस कदम को बेहद भेदभावपूर्ण बताया और सचेत किया कि इससे महिलाओं व लड़कियों के जीवन के लिए कई प्रकार के जोखिम उत्पन्न होंगे।

राजसत्ता द्वारा प्रायोजित भेदभावपूर्ण निर्णयों की एक लंबी फेहरिस्त में यह नई कड़ी है, जिनके जरिए अब तक शिक्षा, कामकाज समेत अन्य क्षेत्रों में महिलाओं व लड़कियों को निशाना बनाया गया है। मानवाधिकार उच्चायुक्त ने कहा है कि ऐसे कदमों को उठा करके, अफगानिस्तान के भविष्य को पूरी तरह से अपने कब्जे में लेने की कोशिश की जा रही है।

तालिबान ने अगस्त 2021 में अफगानिस्तान की सत्ता हथिया ली थी, जिसके बाद से महिला अधिकारों के लिए हालात तेजी से खराब हुए हैं। उनके बुनियादी अधिकारों और स्वतंत्रता को नकारा जा रहा है, जिनमें शिक्षा, कार्य, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य, आवाजाही, भय से आजादी और भेदभाव से मुक्ति के अधिकार हैं। लड़कियों को माध्यमिक स्तर की शिक्षा से दूर कर दिया गया है और महिलाओं के युनिवर्सिटी में पढ़ाई-लिखाई पर पहले ही पाबंदी लगा दी गई थी। महिलाओं व लड़कियों के मनोरंजन पार्क, सार्वजनिक स्नानघर, जिम, स्पोर्ट्स क्लब में जाने पर पाबन्दी है और देश में महिलाओं व लड़कियों के लिए पोशाक संहिता सख्ती से लागू की गई है। उन्हें बिना किसी पुरुष संगी के लम्बी यात्रा करने की अनुमति नहीं है।

मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय ने अपने वक्तव्य में स्पष्ट किया कि इस तालेबानी फैसले से महिलाओं व लड़कियों के लिए, उच्चतर शिक्षा की ओर जाने वाला एकमात्र रास्ता भी बंद हो जाएगा। इससे देश में महिला दाइयों, नर्स व चिकित्सकों की उपलब्धता पर असर होगा, जोकि पहले से ही कम है। इस निर्णय से महिलाओं व लड़कियों के लिए पहले से ही जोखिम से जूझ रहे स्वास्थ्य देखभाल सुलभता के अवसर सीमित होंगे. चूँकि पुरुष मेडिकल कर्मचारियों को पुरुष संगी की उपस्थिति के बिना, महिलाओं का उपचार करने पर मनाही है।

मानवाधिकार कार्यालय के अनुसार, अफगानिस्तान में पहले से ही मातृत्व मृत्यु की ऊंची दर है और इसलिए यह जरूरी है कि स्वास्थ्य सैक्टर में उनकी उपस्थिति को बरक़रार रखा जाए। उन्होंने कहा कि ऐसे कदमों को पुरुषों द्वारा बिना किसी पारदर्शिता के उठाया जाता है और इस प्रक्रिया में किसी अन्य की हिस्सेदारी नहीं होती है। इनके जरिए सीधे तौर पर महिलाओं व लड़कियों को सार्वजनिक जीवन से बाहर रखने की कोशिश की जाती है।

यूएन कार्यालय ने ध्यान दिलाया है कि सत्तारूढ़ तालेबान का यह दायित्व है कि देश की पूर्ण आबादी के कल्याण, सुरक्षा व सलामती का ध्यान रखा जाए। यूएन हाई कमिश्नर वोल्कर टर्क ने तालिबान से आग्रह किया है कि इस हानिकारक निर्देश को वापिस लिए जाने की जरूरत है। अब समय आ गया है कि अफगानिस्तान अपने अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दायित्वों को निभाए और महिलाओं व लड़कियों के मानवाधिकारों को सुनिश्चित किया जाए।

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